गुरु पूर्णिमा का महत्व guru purnima



गुरु कौन  है ?

गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः  (Gururbrhama gururvishno gururdevo maheswarah )
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ( Guru Sakshat Prbrham tasmey shri Gurve namh) 

अर्थ : गुरु ही बर्ह्मा है , गुरु ही विष्णु है , गुरु ही साक्षात् भगवान शिव है।
गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है , ऐसे गुरुदेव के चरणो में मेरा प्रणाम  है ।

गुरु(Guru) दो शब्दों से मिलकर बना  है, गु का अर्थ होता है -अंधकार , और रु का मतलब होता है प्रकाश। 
गुरु वो है जो हमे अंधकार से प्रकाश की और ले जाये । जो हमे अज्ञान  रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की और ले जाये वो गुरु है।   आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरुपूजा की जाती है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुरु पूर्णिमा का दिवस महान ऋषि वेद व्यास को समर्पित है। इसीलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।



गुरु स्त्रोतम 

अखंड - मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं 
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः 

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया 
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः 

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः 
गुरुदेव परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः 

स्थावरं जंगमं व्याप्तं यत्किञ्जित सचराचरं 
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः 

चिन्मयं व्यापि यत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरं 
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः 

सर्व श्रुति शिरोरत्न विराजित पदाम्बुज:
वेदान्ताम्बुज-सूर्यो यः  तस्मै श्री गुरवे नमः

चैतन्य: शाश्वतः शान्तः व्योमातीतो निरञ्जन:
बिंदु नाद कलातीतः तस्मै श्री गुरवे नमः

ज्ञान शक्ति समारुढ: तत्वमाला: विभूषितः 
भुक्ति मुक्ति प्रदाता तस्मै श्री गुरवे नमः

अनेक जन्म सम्प्राप्त कर्म बंध विदाहिने 
आत्मज्ञान प्रदानेन  तस्मै श्री गुरवे नमः

शोषणं भव सिन्धोश्च ज्ञानपं सार सम्पदः 
गुरोः पादोदकं सम्यक तस्मै श्री गुरवे नमः

न गुरोरधिकं तत्वं न गुरोरधिकं तपः 
तत्वज्ञानत परं नास्ति तस्मै श्री गुरवे नमः

मन्नाथः श्री जगन्नाथः मदगुरुः श्री जगदगुरुः 
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतं 
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्री गुरवे नमः

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं 
द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यं 

एकम नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं 
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुम तं  नमामि 

त्वमेव माता च पिता त्वमेव , त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव 
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्व मम देव देव  




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क्या है मान्यता
हिंदू धर्म में Guru Purnima गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के अवतार वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इन्होंने महाभारत आदि कई महान ग्रंथों की रचना की। कौरव, पाण्डव आदि सभी इन्हें गुरु मानते थे इसलिए आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा व व्यास पूर्णिमा कहा जाता है।

हमारी भारतीय संस्कृति में सबसे ऊँचा स्थान गुरुदेव का है इसलिए कहा भी गया है,  गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव, बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय

 संत जी कहते है की मेरे सामने गुरु और भगवान दोनों खड़े हुए है, मैं किसको पहले प्रणाम करू, किसके पैर को पहले नमन करू, पहले गुरु के चरणो में शीश झुकता हु , क्योकि जो भगवान मुझे मिले है, वो गुरु की कृपा से ही मिले है, गुरुदेव नही होते तो भगवन भी नहीं मिलते । गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है।

गुरु की महिमा का जितना गुणगान किया जाये उतना काम है ये ठीक इसी तरह से होगा जैसे सूरज को दीपक दिखाना। प्रथम गुरु माँ(Maa) होती है। जैसी माँ होती है कहते है बच्चा वैसा ही बनता है और वैसे ही संस्कार पाता  है। इसलिए बहुत जरुरी है की माँ बच्चो को अच्छे संस्कार दे। बचपन में दिया गया ज्ञान ही संपूर्ण जीवन उसका मार्गदर्शन करता है। माँ बच्चे के जीवन की नीव बनती है। यदि नीव मजबूत है, संस्कार अच्छे हैं तो वह जीवनभर उसके काम आते है। हम ईश्वर की वंदना करते हैं, तो सबसे पहले उसे मातृ-रूप में देखते हैं- त्वमेव माता च पिता त्वमेव ही कहते है। जीवन में कोई दुःख होता है तब भी माँ ही कहते है। इसलिए हमें सबसे पहले अपनी माँ के चरणों में वंदन करना चाहिए, उनका हार्दिक आशीर्वाद लेना चाहिए। 

कबीरदास जी के गुरु की महिमा का वर्णन इस प्रकार किया है : सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज। समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए।


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